नई दिल्ली। किडनी का गैरकानूनी धंधा बांग्लादेश व भारत में बड़े पैमाने पर फैला हुआ है। गिरोह चार साल में करीब 500 लोगों की किडनी गैरकानूनी तरीके से प्रत्यारोपित कर चुके हैं। इसका खुलासा किडनी रैकेट के पर्दाफाश के बाद हुआ। किडनी बदलने के दौरान चार लोगों की जान भी जा चुकी है। किडनी प्रत्यारोपण अधिकतर नोएडा के यथार्थ व अपोलो में अस्पताल हुए हैं। दिल्ली के एक बड़े प्रतिष्ठित अस्पताल में केवल टेस्ट व जांच होती थीं।
अपराध शाखा के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि गिरोह बांग्लादेश में ज्यादा सक्रिय था। गिरोह के सदस्य गरीब लोगों को भारत में नौकरी दिलाने के बहाने दिल्ली ले आते थे। भारत में उन्हें जसोला में किराए पर मकान लेकर या फिर गेस्ट हाउस में रखते थे। इसके बाद ये उन लोगों का पासपोर्ट जब्त कर लेते थे। इसके बाद गरीब बांग्लादेशियों पर किडनी डोनेट करने का दबाव बनाते थे।
उनसे कहा जाता था कि नौकरी तभी मिलेगी जब आप किडनी बेचोगे। इसकी एवज में उन्हें पैसे का भी लालच दिया जाता था। मजबूरन पीड़ित किडनी देने को तैयार हो जाता था। दूसरी तरफ ये बांग्लादेशियों के डायलिसिस अस्पतालों पर नजर रखते थे। वहां जरूरतमंदों से संपर्क साधते थे। ये किडनी प्राप्तकर्ता को भारत ले आते थे। गिरोह के सदस्य किडनी डोनर व प्राप्तकर्ता के नकली कागजात किराये के मकान में तैयार करते थे।
ये किडनी डोनर व प्राप्तकर्ता के बीच आपस में रिश्तेदार होने के कागजात बनाते थे। कागजात तैयार होने के बाद किडनी डोनर व प्राप्तकर्ता के दिल्ली के प्रतिष्ठित प्राइवेट अस्पताल में टेस्ट होते थे। टेस्ट होने के बाद ये नोएडा के अस्पतालों में प्रत्यारोपण कराते थे। किडनी प्रत्यारोपण के करीब-करीब सभी ऑपरेशन इन्हीं दोनों अस्पतालों में हुए हैं। अपराध शाखा के पुलिस अधिकारियों के अनुसार नोएडा के इन दोनों की अस्पतालों में किडनी प्रत्यारोपण डॉ. डी विजया कुमारी ने किए हैं। वह अपने सहायक विक्रम के जरिए ही इस गिरोह के संपर्क में आई थीं।
वह पिछले चार सालों से इस गिरोह के लिए काम कर रहे हैं। दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के अनुसार इस गिरोह ने तीन से चार लोगों की जान ली है। किडनी लेने व प्राप्तकर्ता की ऑपरेशन के तीन से चार दिन बाद मौत हो गई। ऐसे में पुलिस ने मृत लोगों की पहचान करने के लिए बांग्लादेश उच्चायोग की सहायता ली है। दूसरी तरफ दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार बांग्लादेशियों के बारे में बांग्लादेश उच्चायोग को सूचना दे दी है।
पैसे का खेल ऐसे चलता था…
- 4.5 लाख टका गिरोह के सदस्य किडनी देने वाले को देते थे।
- 20 से 22 लाख प्राप्तकर्ता से लेते थे।
- 4 लाख डॉ. डी विजया कुमारी की पूरी टीम को मिलते थे।
- 1 लाख डॉ. डी विजया कुमारी अपने हिस्से के रूप में लेती थी।
- 4 लाख उस अस्पताल को दिए जाते थे जिनमें किडनी बदली जाती थी।
- 10 लाख गिरोह के लोग अपने पास रख लेते थे।
मरीज से खुद पैसे लेती थी डॉ. विजया
दिल्ली के एक नामचीन निजी अस्पताल में कंस्लटेंट रही डॉ. डी विजया कुमारी का पैसे लेने का तरीका भी अलग था। पुलिस ने उसके दो बैंक खातों का पता लगा है। पीएनबी के खाते में 10 लाख रुपये से ज्यादा और दूसरे खाते में दो लाख रुपये से ज्यादा मिले हैं। दिल्ली पुलिस डॉ. डी विजया कुमारी के दोनों बैंक खातों की पिछले कई सालों की डिटेल खंगाल रही है।
पुलिस अधिकारियों के अनुसार नोएडा के एक अस्पताल से उसके सहायक विक्रम के बैंक खाते में पैसे आते थे। डॉक्टर के बैंक खाते में 90 हजार से एक लाख रुपये आते थे, जबकि नोएडा के ही दूसरे अस्पताल में वह मरीज से खुद पैसे लेती थी। इसके बाद वह सभी को पैसे बांटती थी। वह अपनी पूरी टीम के साढ़े तीन लाख से चार लाख रुपये रख लेती थी। अस्पताल को एक किडनी प्रत्यारोपण का चार लाख रुपये दिया जाता था।